कुछ यादों की सिलवटें
कुछ उनींदें सपनों की उलझी लटें
कुछ गुफ़्तगू पुराने होते घर से
थोड़ा टीवी के साथ करवटें
कुछ बोरियत भरे लम्हों से लड़ाई
कुछ अहसासों से हाथापाई
कुछ बाहर-भीतर भरी रद्दी की छंटाई
थोड़ी मकड़जालों में फंसी ज़िंदगी की सफाई
कुछ अपनों से बातें
कुछ अपनी बातों की बातें
कुछ चाही-अनचाही मुलाकातें
थोड़ी वक़्त को थाम लेने की कोशिशें
कुछ गाने चाय के प्यालों में
कुछ पिछली अधूरी साँसें
कुछ फिक्र को उड़ाते पलों से यारी
थोड़ी कोशिश खुद को जीने की हमारी
थोड़ी मुहब्बत थोड़ी इबादत
थोड़ी मरम्मत थोड़ी हजामत
थोड़ा काम थोड़ा आराम
अलसाई सुबह एक मुट्ठी शाम
...रजनीश (13.06.11)