Tuesday, May 31, 2011

कार

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चलते-चलते थक कर
किनारे सड़क के
रुकी इक कार से
टिककर कुछ सांसें लेता  हूँ
माथे पर उभर आई हैं बूंदें पसीने की...
पोंछते-पोंछते लगता है
जिस कार का सहारा लिया है
वो जैसे मेरी ही ज़िंदगी है
एक जगह पर "पार्क"
सड़क पर आने के लिए
कुछ सांसें इकठ्ठा करती ...
कार की तरह ही
एक छोटी सी नियत परिधि में
सफर तय करती ज़िंदगी
एक नियत क्रम में
जैसे एक खूँटे से बंधी ...
कितना सीमित कर लिया है
अपनी ज़िंदगी को इन रस्तों में
कितना थोड़ा सा हूँ मैं ...

फिर चल पड़ता हूँ
इस बार एक नई दिशा में
यही सोचकर कि शायद
कुछ और खुल जाऊँ
कुछ और खिल जाऊँ
जो भीतर छुपा हूँ
कुछ और मिल जाऊँ
कुछ और संभावनाएं
कुछ नई शुरुआत
कुछ और सड़क और शिखर खोजूँ
क्यूंकि नहीं परखा है सीमाओं को
बहुत थोड़ा सा ही
जाना है और जिया है
खुद को अब तक ...
...रजनीश (30.05.11)

Sunday, May 29, 2011

एक इबारत

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झील की ओर
जा रहे हो ?
वहाँ  खड़ी दीवार पर
लिखी जो  इबारत है
मेरे सपनों का लेखा-जोखा ,
मेरी कहानी है..
पर उसमें मेरे सपने
नहीं  दिखेंगे तुम्हें ...
उन्हें समझना हो
तो वहीं दीवार से लगे
पेड़ से जमीं पर
टूट कर गिरते
पत्तों को देख लेना ...
...रजनीश (29.05.11)

Saturday, May 28, 2011

इक रास्ता दो राही

एक ड्राइवर की ज़िंदगी कुछ लाइनों में बयान करने की कोशिश है यहाँ पर
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मेरी ज़िंदगी के रास्ते में
मिलता है एक ज़ालिम रास्ता
वही रास्ता जो सोता नहीं
है वो उसकी ज़िंदगी का रास्ता

जो मेरे घर का रास्ता है
वो रास्ता उसका घर है
मेरे घर पर एक छत है
उसका तो फैला अंबर है

एक गाड़ी मैं चलाता हूँ
रास्ते को आसान बनाने
एक गाड़ी वो चलाता है
ज़िंदगी की गाड़ी चलाने

हो जाती है जब रात
मेरी गाड़ी रुक जाती है
पर  होती है उसकी रात तभी
गाड़ी जब  उसकी रुक जाती है

मेरे रास्ते पर रिश्तों से
मुलाकात क्षणिक हो पाती है
उसके रास्ते , मुलाकातों में
क्षणिक  रिश्ते बन जाते हैं

एक ही हैं हम दोनों
हैं दो हिस्से एक कहानी के
मैं हूँ एक ज़िंदगी
टूटे पहिये वाली
वो पहियों पे भागती
एक टूटी हुई ज़िंदगी
…रजनीश (22.05.11)

Friday, May 27, 2011

लार्जर देन लाईफ

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बैट मैन,
सुपर मैन,
स्पाइडर मैन,
बच्चे-बड़े सभी हैं फैन ...

बचपन में ही इनसे
मिल जाती है ये सीख
कि बुराई को ख़त्म करना
आम आदमी के बस
की बात नहीं,
क्यूंकि कर सके
मुक़ाबला पहाड़ जैसी
हैवानियत का ,
खत्म कर दे उसे,
आम आदमी में
इतनी ताकत नहीं...

कुछ कौतूहल , कुछ रोमांच
और सपने इंसानियत के
देख सकें दिन में नैन
इसीलिए बनाए हमने 
बैट मैन,
सुपर मैन,
स्पाइडर मैन...
...रजनीश (15.05.11)
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