आओ नव वर्ष
है स्वागत तुम्हारा
हो तुम मुबारक
ये सपना हमारा
लड़ेंगे न भिड़ेंगे
न ही दंगे करेंगे
भाईचारे के साथ
प्रेम की राह हम चलेंगे
न लुटेगा कोई
न भूखा रहेगा
न ही भटकेगा कोई
न तन्हा रहेगा
बन जाएगा जीवन
गुलशन हमारा
हो तुम मुबारक
ये सपना हमारा
पानी तुम लाना
बाढ़ पर न देना
न लाना तूफ़ान
भूकंप तुम न देना
जलाए ना सूरज
जमाए ना ठंड
मौसम बदलना
पर मौत तुम न देना
प्रेम पर्यावरण से
वचन ये हमारा
हो तुम मुबारक
ये सपना हमारा
है पता तुम हो भोले
तुम झरने का जल हो
विनाश तुम नहीं
तुम सुंदर कमल हो
हो दर्पण तुम्हारी देह पर
हमारी ही छाया
शुभाशुभ तुम्हारा चेहरा
हमारी ही माया
दो आशीष हमको
चित्त शुद्ध हो हमारा
हो तुम मुबारक
ये सपना हमारा
आओ नव वर्ष
है स्वागत तुम्हारा
हो तुम मुबारक
ये सपना हमारा ....
...रजनीश ( 31.12.2011)
नव वर्ष 2012 की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
महीने दर महीने
बदलते कैलेंडर के पन्ने
पर दिल के कैलेंडर में
तारीख़ नहीं बदलती
भागती रहती है घड़ी
रोज देता हूँ चाबी
पर एक ठहरे पल की
किस्मत नहीं बदलती
बदल गए घर
बदल गया शहर
बदल गए रास्ते
बदला सफर
बदली है शख़्सियत
ख़याल रखता हूँ वक़्त का
बदला सब , पर वक़्त की
तबीयत नहीं बदलती
कुछ बदलता नहीं
बदलते वक्त के साथ
सूरज फिर आता है
काली रात के बाद
उसके दर पर गए
लाख सजदे किए
बदला है चोला पर
फ़ितरत नहीं बदलती
क़यामत से क़यामत तक
यूं ही चलती है दुनिया
चेहरे बदलते हैं पर
नियति नहीं बदलती ...
रजनीश (27.12.2011)
एक और साल ख़त्म होने को है पर क्या बदला ,
सब कुछ तो वही है , बस एक और परत चढ़ गई वक़्त की ....
बचपन में हमने जब सीटी बजाई
डांट भी पड़ी थोड़ी मार भी खाई
होठों को गोलकर
मुंह से हवा छोड़ना
किसी गाने की लय
से लय जोड़ना
क्या गुनाह है
अपनी कलकारी दिखाना
इन्सानों को सीटी की
प्यारी धुन सुनाना
फिर कहा किसी ने
कला का रास्ता मोड़ दो
शाम ढले खिड़की तले
तुम सीटी बजाना छोड़ दो
अब हम क्या कहें आप-बीती
कभी ढंग से न बजा पाये सीटी
कभी वक्त ने तो कभी औरों ने मारा
अक्सर हो मायूस दिल रोया हमारा
पर मालूम था अपने भी दिन फिरेंगे
कभी न कभी अपने दिन सवरेंगे
समाज सेवकों को हमारी बधाई
हमारी आवाज़ संसद तक पंहुचाई
आज कल खुश है अपना दिल
आने वाला है व्हिसल-ब्लोअर्स बिल !
जब कानून होगा साथ
फिर क्यों चुप रहना
अब खूब बजाएँगे सीटी
किसी से क्या डरना !
.....रजनीश (25.12.2011)
MERRY CHRISTMAS
एक राह
खोई सी कोहरे में
इक राह
कहीं छुप जाती है
धरती पर उतर आए
सफ़ेद बादलों के छुअन सी
एक पदचाप सुन
एक राह फिर जी उठती है
कुछ कदम
और चले जाते हैं
कोहरे में
और राह फिर लौट आती है ...
एक राह
शुरू होती है सपनों में
दिल से होकर जाती है
जब-जब मिलती हैं
आँखों से आंखे
इस राह में कलियाँ मुसकुराती हैं ...
जब होते हैं हाथों में हाथ
और दिल से जब
दिल करता है बात
इस राह में
दौड़ते हैं कुछ जज़्बात
पार करते मीलों के पत्थर
एक राह रुकती नहीं
ठहरे हुए वक्त में
जब अपना वजूद खोता एक आगोश
सुनता है धड़कनों के गीत
राह नाचती है
एक राह
कब रात से होकर दिन
और दिन से रात में चली जाती है
बढ़ते कदमों को
खबर नहीं होती
इस राह पर
फूलों को देखा नहीं मुरझाते कभी
तितलियाँ नहीं सुस्ताती कभी
चाँदनी का एहसास
सूरज की किरणों के बीच भी
कदम -कदम पर
राह में रहता है मौजूद
अलसाती नहीं कोई शाम
और खुशनुमा मौसम
कभी बदलता नहीं
मुसकुराते आंसू
और पग पग पर
बिखरे मोतियों से चमकती
ये राह कभी थकती नहीं
प्यार की राह
ऐसी ही होती है ...
...रजनीश (23.12.2011)
पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....