Tuesday, December 31, 2013

स्वागत नए वर्ष का ...















बस जाने वाला है इक साल
बस आने वाला है इक साल

चढ़ गई एक और परत
वक़्त की हर तरफ़
कुछ सूख गए पेड़ों और
कुछ नई लटकती बेलों में
बस कुछ खट्टी मीठी यादें
बाकी सब , पहले जैसा ही  हाल


बस जाने वाला है इक साल
बस आने वाला है इक साल


एक बारिश सुकून की
धो गई कुछ ज़ख़्म इस बरस
कुछ अरमान ठिठुरते रहे
कड़कड़ाती ठंड में सहमे
चढ़ते उतरते रहे मौसम के रंग
जवाबों में फिर मिले कुछ सवाल


बस जाने वाला है इक साल
बस आने वाला है इक साल

....रजनीश (16.12.2012)
repost
नव वर्ष 2014 की हार्दिक शुभकामनाएँ ....

Thursday, October 31, 2013

कहाँ है सोना ...


चलो खोजें
सोना रे, सोना रे, सोना रे
ऐसा मौका
ना  हाथ से खोना रे
मैंने कहा
यहीं नीचे गड़ा है
सोचो मत,
ढूंढो
इसे यहीं होना रे

पैसों पे मरती है ये
पैसों से चलती है ये
सोना हो साथ तो
सलाम करती है ये दुनिया
सोना खोजो
गड्ढे खोदो
गहरे जाओ इसे यहीं होना रे
चलो खोजें ...

कितने गड्ढे किए
कितने सपने देखे
ना  सोना मिला
कहीं ना खजाना दिखा
अरे खुद में झाँको
अपने अंदर
गहरे जाओ इसे वहीं होना रे

चलो खोजें
सोना रे सोना रे सोना रे
ऐसा मौका
ना हाथ से खोना रे
मैंने कहा
यहीं नीचे गड़ा है
सोचो मत,
 ढूंढो
इसे यहीं होना रे ...
....रजनीश (31.10.2013)




Tuesday, October 29, 2013

ले ले प्याज ले ...

जाना मेरी जाना ...प्याज लाया तेरा दीवाना
बता ....बता अरे कैसा आ गया ये जमाना

हम ...मारे हैं प्याज के , मांगे सब की खैर ....
प्याज के आँसू आज रो रहे , क्या अपने क्या गैर .....

ले ले प्याज ले , प्याज ले,  प्याज ले रे ...
हमसे प्याज ले

दुनिया वाले कुछ भी समझें, हम तेरे दीवाने
खुद न खा सकें , पर तुझे खिलाएँ, गा के प्रेम तराने
ले ले प्याज ले...
ले ले प्याज ले , प्याज ले,  प्याज ले रे ...
हमसे प्याज ले

यूं तो हम हैं रोज ही खिचड़ी सब्जी रोटी खाते
पर साथ प्याज नहीं होता...आज तुझे बतला दें
बिना प्याज का खाना हरदिन हम मजबूर हैं खाते
तुझे चाहते, तेरे लिये बचाते जो मुश्किल से लाते
ले ले प्याज ले ...
ले ले प्याज ले , प्याज ले,  प्याज ले रे ,
हमसे प्याज ले 

प्याज गरीबों का था खाना खाते वो नसीब के मारे
पर प्याज सेब पर भारी पड़ गया ...कोई इसे बचा ले
जमाखोरों की पौ बारह हुई , प्याज रखें धन बरसे
अरे तोड़ दो ताले गोदामों के , कोई घर ना प्याज को तरसे
ले ले प्याज ले ...
ले ले प्याज ले , प्याज ले,  प्याज ले रे ,
हमसे प्याज ले...

..........रजनीश (29.10.2013)  

Wednesday, October 23, 2013

प्यार का दर्द ...

सुबह की मंद बयार में
ओस के बिछौने पे खड़े होकर 
कोमल पंखुड़ियों से छनकर आती
मीठी धूप में नहाना
कितना अच्छा लगता है
और यही धूप पेड़ों के सहारे
जब ऊपर चढ़ती और बढ़ती है
कसैली हो जाती है
झुलसाने लगती है
वक्त की आंच के मानिंद
... 
लू के थपेड़ों में
घने दरख्त की ठंडी छाँव
जुल्फों के साये का सुकून देती हैं
गुलाबी ठंड में हो जाती है
धीमी कुछ आंच जख्मों की
पर पहाड़ों से उतरते-उतरते
ये ठंड काली हो जाती है
हड्डियाँ कंपा देती है
और खून जमा देती है
दब जाती है ज़िंदगी 
बर्फ की मोटी परतों के तले 
 ....
माँ की तरह
ढेर सारा पानी लिए
बरसते हैं बादल
प्यासी धरती की खातिर
सींच देते हैं जमीन
फुहारें ले आतीं हैं
चाहतों का मौसम
सपनों की बारिश का आलम
और कभी बरसते-बरसते
इतना बरस जाते हैं बादल
कि आ जाता है सैलाब
जो डुबो कर सब कुछ
बहा ले जाता है सारे सपने 
 ....
और ऐसा ही कुछ 
प्यार के साथ भी है ...

......रजनीश (23.10.2013)
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