Friday, February 3, 2017
जिंदगी- सपना- गम- हम
जिंदगी
तू है जिंदगी आसां जरा भी मुश्किल नहीं पर ये जाना
ख्वाहिश अपने ढंग से जीने की, तुझे दुश्वार बना देती है
सपने
सपने छोटे ही अच्छे बड़े की कीमत भी बड़ी होती है
हो सपना कोई भी पूरा खुशी तो हमेशा पूरी होती है
गम
करते हैं गम का शुक्रिया खुशी से पहचान कराने का
वो भी बार बार आकर खुश रहना सिखा जाता है
गुस्से को समझो
गुस्से को आने दो पर गुस्से को जाने दो
समझो क्या कहता है पर घर ना बनाने दो
हम खुद
हम देखते हैं वो दिखता नहीं जो देखने पर
जबसे देखा है खुद को बैठ आईने के भीतर
Sunday, January 31, 2016
सवाल ही सवाल
गली-गली शहर-शहर
ये हर कहीं का हाल है
उलझनों में कस रहे
हर किसी को डस रहे
झकझोरते खड़े हुए सवाल ही सवाल हैं
किसी के लिए आस्था
किसी के लिए परंपरा
किसी के हाथ हक के लिए
जल रही मशाल हैं
उलझनों में कस रहे
हर किसी को डस रहे
झकझोरते खड़े हुए सवाल ही सवाल हैं
किसी के लिए कचरा
किसी के लिए मौका
किसी के हाथ तख्ती लिए
भूख से बेहाल हैं
उलझनों में कस रहे
हर किसी को डस रहे
झकझोरते खड़े हुए सवाल ही सवाल हैं
किसी के लिए बाजार
किसी के लिए प्रचार
किसी के लिए प्रदूषण
साँसों का सवाल है
उलझनों में कस रहे
हर किसी को डस रहे
झकझोरते खड़े हुए सवाल ही सवाल हैं
किसी के लिए शोहरत
किसी के लिए ताकत
किसी के लिए वजूद
और अस्मिता का सवाल है
उलझनों में कस रहे
हर किसी को डस रहे
झकझोरते खड़े हुए सवाल ही सवाल हैं
स्वार्थों के फेरे में
झूठे सवालों के घेरे में
सच का गला घुंट रहा
बस यही मलाल है
उलझनों में कस रहे
हर किसी को डस रहे
झकझोरते खड़े हुए सवाल ही सवाल हैं
गली-गली शहर-शहर
ये हर कहीं का हाल है
ये हर कहीं का हाल है
उलझनों में कस रहे
हर किसी को डस रहे
झकझोरते खड़े हुए सवाल ही सवाल हैं
किसी के लिए आस्था
किसी के लिए परंपरा
किसी के हाथ हक के लिए
जल रही मशाल हैं
उलझनों में कस रहे
हर किसी को डस रहे
झकझोरते खड़े हुए सवाल ही सवाल हैं
किसी के लिए कचरा
किसी के लिए मौका
किसी के हाथ तख्ती लिए
भूख से बेहाल हैं
उलझनों में कस रहे
हर किसी को डस रहे
झकझोरते खड़े हुए सवाल ही सवाल हैं
किसी के लिए बाजार
किसी के लिए प्रचार
किसी के लिए प्रदूषण
साँसों का सवाल है
उलझनों में कस रहे
हर किसी को डस रहे
झकझोरते खड़े हुए सवाल ही सवाल हैं
किसी के लिए शोहरत
किसी के लिए ताकत
किसी के लिए वजूद
और अस्मिता का सवाल है
उलझनों में कस रहे
हर किसी को डस रहे
झकझोरते खड़े हुए सवाल ही सवाल हैं
स्वार्थों के फेरे में
झूठे सवालों के घेरे में
सच का गला घुंट रहा
बस यही मलाल है
उलझनों में कस रहे
हर किसी को डस रहे
झकझोरते खड़े हुए सवाल ही सवाल हैं
गली-गली शहर-शहर
ये हर कहीं का हाल है
...रजनीश (31.01.16)
Sunday, January 24, 2016
उम्मीदें
कुछ रास्तों पर
मील का पत्थर होता नहीं है
और कोई हम सफर भी मिलता नहीं है
फिर भी इन रस्तों पर
भटकते-बिखरते
क्या जाने कदम क्यूँ चलते जाते हैं
एक पन्ने पर
जो लिखा है वो बदलता नहीं है
नया कोई पन्ना भी मिलता नहीं है
फिर भी कुछ किताबों को
पन्ने दर पन्ने
क्या जाने नयन क्यूँ पढ़ते जाते हैं
एक सपने में
जो गाया वो सच होता नहीं है
जो सपने मे पाया वो मिलता नहीं है
फिर भी कुछ सपनों को
जागते और सोते
क्या जाने हम क्यूँ देखते जाते हैं
मतलबी शहर में
कोई अपना होता नहीं है
ढूँढने से भी हमदम कोई मिलता नहीं है
फिर भी एक पते को
दर-दर खोजते
क्या जाने हम क्यूँ पूछते जाते है
मील का पत्थर होता नहीं है
और कोई हम सफर भी मिलता नहीं है
फिर भी इन रस्तों पर
भटकते-बिखरते
क्या जाने कदम क्यूँ चलते जाते हैं
एक पन्ने पर
जो लिखा है वो बदलता नहीं है
नया कोई पन्ना भी मिलता नहीं है
फिर भी कुछ किताबों को
पन्ने दर पन्ने
क्या जाने नयन क्यूँ पढ़ते जाते हैं
एक सपने में
जो गाया वो सच होता नहीं है
जो सपने मे पाया वो मिलता नहीं है
फिर भी कुछ सपनों को
जागते और सोते
क्या जाने हम क्यूँ देखते जाते हैं
मतलबी शहर में
कोई अपना होता नहीं है
ढूँढने से भी हमदम कोई मिलता नहीं है
फिर भी एक पते को
दर-दर खोजते
क्या जाने हम क्यूँ पूछते जाते है
.......रजनीश (24.01.16)
Saturday, December 12, 2015
मौसम , माहौल और प्रदूषण
[1] ठंड का मौसम
छोटे हो गए दिन अब लंबी ठंडी रातें एक साल की बिदाई नए साल की बातें
[2] प्रदूषण और सम विषम
बारह बजने को हुए रात , बॉर्डर दिल्ली का किया पार अब करना कार से वापस घुसने दिनभर का तुम इंतज़ार
[3] प्रदूषण और सम विषम
तुम्हारी कार सम और मेरी है विषम, आज चलूँ मैं कल चलो तुम इस आज-कल में थोड़ा भ्रम थोड़ा गम ,क्या होगा प्रदूषण कम
[4] प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग
मत उड़ा हर फिक्र को तू धुएँ में मेरे यार खतरा है ग्लोबल-वॉर्मिंग का बन जा समझदार
[5] फ्रांस
दहली फिर मानवता देखो धमाकों और चीत्कारों से मिट न सकेंगे ये धब्बे काले दिल की रोती दीवारों से
छोटे हो गए दिन अब लंबी ठंडी रातें एक साल की बिदाई नए साल की बातें
[2] प्रदूषण और सम विषम
बारह बजने को हुए रात , बॉर्डर दिल्ली का किया पार अब करना कार से वापस घुसने दिनभर का तुम इंतज़ार
[3] प्रदूषण और सम विषम
तुम्हारी कार सम और मेरी है विषम, आज चलूँ मैं कल चलो तुम इस आज-कल में थोड़ा भ्रम थोड़ा गम ,क्या होगा प्रदूषण कम
[4] प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग
मत उड़ा हर फिक्र को तू धुएँ में मेरे यार खतरा है ग्लोबल-वॉर्मिंग का बन जा समझदार
[5] फ्रांस
दहली फिर मानवता देखो धमाकों और चीत्कारों से मिट न सकेंगे ये धब्बे काले दिल की रोती दीवारों से
.......रजनीश ( 12.12.15)
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