Monday, August 8, 2011

खोज

021209 279















कोशिश करता रहता हूँ
खुद को जानने की
चल रहा हूँ एक लंबे सफर में
खुद को समझने की
सब करते होंगे ये
जो जिंदा है ,
मरे हुए नहीं करते
कोशिश का ये रास्ता ,
दरअसल भरा है काँटों से

बेसिर पैर और अनजानी सी जिंदगी
से बेहतर हैं ये कांटे
जिनकी चुभन से उड़ती है नींद और
खुल जाती है आँख
ये कांटे दिखाते हैं रास्ता
देते हैं हौसला
और भरते हैं मुझमें आशा ,
और आगे जाने की
खुद से बेहतर हो जाने की......
....रजनीश

11 comments:

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

रजनीश भाई, दिल को छू गयी आपकी बात।

ब्‍लॉग के लिए ज़रूरी चीजें!

Dr (Miss) Sharad Singh said...

गहन चिन्तन युक्त सुंदर कविता !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत अच्छी सोच ..खुद से बेहतर हो जाने की ..

vandana gupta said...

वाह ये खोज ही तो अंतिम लक्ष्य तक लेकर जाती है।

Anita said...

खुद से बड़ा होना जिसने चाहा वही सच्चा मानव है, खुद को जो चूक जाते हैं वे अंत में पछताते हैं...

Saru Singhal said...

Heart touching!!!

विभूति" said...

सार्थक खोज...

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत सुन्दर...वाह!

सागर said...

veru touching...

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

'ये कांटे दिखाते हैं रास्ता
देते हैं हौसला .......'
..................संघर्षों में जीना ही असली जिंदगी है
....................सुन्दर प्रस्तुति

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

बहुत खुबसूरत भाव रजनीश जी...
सादर आभार...

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....