जिंदगी रुक सी गई है
कदम जम से गए हैं 
एक वायरस के आने से
कुछ  पल थम से गए हैं 
कहीं  कब्र नसीब नहीं होती
कोई रातोरात जलाया जाता है
इंसानियत  शर्मसार होती है
उसे एक खबर बनाया जाता है 
कभी होती  नहीं हैं खबरें 
बनाई  जाती हैं
कभी होती नहीं जैसी
दिखाई जाती हैं 
जिसे समझा था दुश्मन
अल्हड़ बचपन का 
बन गया  लॉकडाउन  में
वो जरिया शिक्षण का
पास आने की चाहत
 पर दूर रहने की जरूरत
 किस ने कह दिया जिंदगी से
 मुसीबतें कम हो गई हैं ?
....रजनीश (१२.१०.२०२०, सोमवार)
  
3 comments:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 13 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह वर्तमान परिस्थितियों पर सुन्दर लेखन.... मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है 🙌
पास आने की चाहत
पर दूर रहने की जरूरत
किस ने कह दिया जिंदगी से
मुसीबतें कम हो गई हैं ?
–मुसीबतों का रहना जरूरी होता है..
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