Thursday, October 22, 2020

अपेक्षा

सूरज से अपेक्षा 
धूप दे पर लू नहीं

बादल से अपेक्षा 
पानी दे पर बाढ़ नहीं

हवा से अपेक्षा 
ठंडक दे पर आंधी नहीं

रास्ते से अपेक्षा 
मंजिल दे पर छाले नहीं 

धरा से अपेक्षा 
जगह दे पर भूकंप नहीं 

मित्र  से अपेक्षा 
सवाल करे  पर विरोध नहीं 

पड़ोसी से अपेक्षा
मदद करे पर मांगे नहीं 

बच्चे से अपेक्षा 
मांग करे पर रूठे नहीं 

साथी से अपेक्षा
सब सुने कुछ पूछे नहीं 

ऊपरवाले से अपेक्षा
सुख दे पर दर्द नहीं

जीवन का अंत है 
अपेक्षाओं का अंत नहीं 

......रजनीश ( २२.१०.२०२०, गुरुवार)

4 comments:

Anita said...

और हर अपेक्षा टूटेगी ही
काश मन से अपेक्षा हो कि साक्षी रहे प्रतिक्रिया न करे

अनीता सैनी said...

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२४-१०-२०२०) को 'स्नेह-रूपी जल' (चर्चा अंक- ३८६४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी

Ananta Sinha said...

आदरणीय सर,
अत्यंत सुंदर और सटीक सन्देश देती हुई कविता। सच में हम मानवों ने सब कुछ और हर किसी से अपेक्षा लगा रखी है। केवल अपने आप से अपेक्षा करना भूल जाते हैं।
बहुत सुंदर रचना के लिये हृदय से आभार व सदर नमन।
आपसे अनुरोध है कृपया मेरे ब्लॉग पर भी आएं। यदि आप मेरे नाम पर क्लिक करें तो वो आपको मेरे प्रोफाइल तक ले जाएगा। वहाँ मेरे ब्लॉग के नाम काव्यतरंगिनी पर क्लिक करियेगा, आप मेरे ब्लॉग पर पहुँच जाएँगे।

मन की वीणा said...

वाह बहुत खूब ! मानव को हर एक से बस अपेक्षा है पर स्वयं सभी अच्छे विचारों की उपेक्षा करता है ।
बहुत सुंदर सृजन।

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....