तपती धरा
सुलगी दुपहरी
रूठे बदरा
झुलसाती लू
घने पेड़ों का साया
माँ का पल्लू
लू के थपेड़े
मीलों का है फासला
जीने की राहें
उगले धुआँ
प्रदूषित समाज
जलता जहाँ
रिश्तों की आग
झुलसता है दिल
गर्मी की आस
सूखते चश्मे
ज़िंदगी की तपिश
भाप होते जज़्बात
गर्मी के दिन
वर्षा का गर्भकाल
हैं पल छिन
.......रजनीश (19.05.2013)
हाइकू लिखने का प्रथम प्रयास