Wednesday, October 15, 2014

बारिश के बाद


(1)
बारिश के इंतज़ार में
रुक गई थी कलम
किताब पर पड़ी रही
आसमां तकते तकते
स्याही भी सूख चली थी
पन्ने झुलस रहे थे
तब बादल उमड़ पड़े
और फिर बारिश आ गई

कुछ छींटे पन्नों पर  पड़े
और भीग गए कुछ शब्द
धुल गई कुछ लाइनें
एक पन्ना फिर कोरा हो गया
कुछ लाइनों को मिटाने की कोशिश की थी
पर बूंदें उन्हें अनछुआ छोड़ गईं

भीगी किताब को सुखाया
बारिश के जाने के बाद
बदली शक्ल वाली किताब लिए
यही सोचता रहा
क्यूँ हुई ये बारिश ....
....
(2)

बारिश का इंतज़ार
रहता है बारिश होने तक
बारिश हो जाने पर
उसके जाने का इंतज़ार
जैसे मेरे लिए ही होती हो ये बारिश
न मेरे बुलाने से आती है
न मेरे मनाने से जाती है
बारिश का एक मकसद है
जिससे लेती है उसे लौटाती है
जिसका होता है पानी
उसे ही सौंपती है वापस
जमीन की होती है ये बारिश
क्यूंकि पानी भी है इसी जमीन का
पर  हक़ मैं जताता हूँ अपना
इसी लिए दर्द आता है मेरे हिस्से ...

.........रजनीश (15.10.2014)
बड़े दिनों बाद लिखा है । 
पिछली कविता "बारिश के इंतज़ार" 
पर खत्म की थी इसीलिए वहीं से शुरू कर रहा हूँ ...

Thursday, June 26, 2014

बारिश का इंतज़ार

















बारिश ...
बारिश का इंतज़ार
जैसे बरसों से था

वक़्त की गरम धूप
पसीना भी सुखा ले गई थी
दिल पे बनी
मोटी दरारों में
कदम धँसने लगे थे

लगता है
भागते भागते
सूरज के करीब
पहुँच गया था मैं

जो इकट्ठा किया था
अपने हाथों से
अपनी किस्मत का पानी
वो भाप बना
उम्मीद के बादलों में
समा गया था

और जब गिरा पानी
बादलों से पहली बार
तो यूं लगा कि
भर जाएगा मेरा कटोरा
पूरा का पूरा

पर बादलों में
कहाँ था वो कालापन
कहाँ थी वो बरस जाने वाली बात
कुछ मतलबी हवाओं संग
कहीं और निकल गए बादल

जो थोड़ी बूँदा-बाँदी
ये वक़्त करा देता है
तरस खाकर,
उसी में भिगोये खुद को
इंतज़ार किया करते है

हरदम यही लगता है
कि होने को है
अपने हिस्से की बारिश

बारिश का इंतज़ार
बरसों से है ....
...............रजनीश (26.06.2014)
( जून में तो बारिश हुई नहीं ठीक से ,
मौसम विभाग के अनुसार 
अच्छी बारिश जुलाई में हो सकती है , 
पर  इस साल  की बारिश औसत से कम होगी ) 



Sunday, June 22, 2014

रेलगाड़ी ...छुक छुक छुक छुक



रेलगाड़ी रेलगाड़ी
छुक छुक छुक छुक
छुक छुक छुक छुक
बढ़ा किराया दिल मेरा बोले 
रुक रुक रुक रुक 
रुक रुक रुक रुक 



हम भी कभी रेल से थे जाते 
यहाँ वहाँ यात्रा कर आते 
पैसे देकर टिकट थे लाते 
जो च जाते  वो घर ले जाते 
अब तो जो हम लेकर जाते 
वो पैसे भी हैं कम पड़ जाते 

रेल बुलाती आज भी हमको 
छुक छुक छुक छुक
छुक छुक छुक छुक
पर जेब बेचारी है ये कहती 
रुक रुक रुक रुक 
रुक रुक रुक रुक 

कभी रेल का सफ़र था मजा
अब तो रेल का सफ़र है सजा  
क्यूंकि सस्ते में था हो जाता
रोटी के लिए भी कुछ बच जाता
कमरतोड़ महंगाई से निकला दम
कोई सस्ता रस्ता नज़र नहीं आता

 रेल बुलाती आज भी हमको 
छुक छुक छुक छुक
छुक छुक छुक छुक
पर जेब बेचारी है ये कहती 
रुक रुक रुक रुक 
रुक रुक रुक रुक 

....रजनीश (22.06.2014)

Friday, May 30, 2014

अच्छे दिन


अच्छे दिन ....

कौन से दिन होते हैं अच्छे
जिस दिन होता हूँ मैं अच्छा
या जिस दिन होते हो तुम अच्छे
या जिस दिन मैं तुम्हारे लिए अच्छा
या जिस दिन तुम मेरे लिए अच्छे

कौन से दिन होते हैं अच्छे
जिस दिन हम दोनों ही हों अच्छे
या सारा जग ही हो अच्छा
या जिस दिन हम जग के लिए अच्छे
या जिस दिन जग हमारे लिए अच्छा

कौन से दिन होते हैं अच्छे
जिस दिन की जब बीती रात अच्छी
या जिस दिन की सुबह अच्छी
या जिस दिन की दोपहर शाम अच्छी
या जो दिन पूरा का पूरा अच्छा

कौन से दिन होते हैं अच्छे
जिनसे पहले बीते हों बुरे दिन
या जिनके आगे हों बुरे दिन
या जो कभी बीते ही नहीं वो दिन
या जो कभी आते ही नहीं ऐसे दिन

कौन से दिन होते हैं अच्छे
मुट्ठी भर अच्छे पलों वाले दिन
या ढेर सारे अच्छे पलों वाले दिन
या  जो बीत गए वो पुराने हुए  दिन
या जो आएंगे वो उम्मीदों वाले दिन

अच्छा दिन गर खोजें तो सपना है
अच्छा दिन गर जी लें तो अपना है
जो सच होता है वर्तमान में
अच्छा दिन ना बीतता है
अच्छा दिन ना आता है
जो जीता है वो पाता है
अच्छा दिन बस होता है
अभी यहीं हर कहीं
आज है अच्छा दिन ......

रजनीश ( 30.05.2014)
पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....