लम्हा दर लम्हा 
मैं कुछ जीतता गया 
कुछ भीतर रीतता गया 
वक्त बीतता गया 
लम्हा दर लम्हा 
मैं कुछ जोड़ता गया
कुछ पीछे छोड़ता गया 
वक्त बीतता गया 
लम्हा दर लम्हा 
मैं कुछ जुटाता गया 
कुछ यूं ही लुटाता गया 
वक्त बीतता गया 
लम्हा दर लम्हा 
मैं कुछ निभाता गया 
कुछ रिश्ते भुलाता गया
वक्त बीतता गया 
लम्हा दर लम्हा 
मैं कुछ अपनाता गया
कुछ मौके ठुकराता गया
वक्त बीतता गया
लम्हा दर लम्हा 
मैं सब को हंसाता गया 
कभी खुद को रुलाता गया 
वक्त बीतता गया 
लम्हा दर लम्हा 
मैं जीवन की बगिया
सींचता गया 
 वक्त बीतता गया 
..... रजनीश (१५.१०.२०२०, गुरुवार)
  
3 comments:
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१७-१०-२०२०) को 'नागफनी के फूल' (चर्चा अंक-३८५७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
सुन्दर सृजन
सही कहा वक्त के साथ बहुत कुछ घटित होता चला जाता है ...कुछ अच्छा तो कुछ बुरा भी...
बहुत सुन्दर सृजन
Post a Comment