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Sunday, April 3, 2011

चंद शेर

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स्वर्ग  और नर्क के संसार यहीं होते है ..
भगवान और शैतान के दीदार यहीं होते हैं..

मिलने गया था कल इमाँ से उसकी बस्ती में ,
देखा  कुछ लोग उसकी तस्वीर लिए रोते हैं..

हमारे सपनों की लड़ियों में स्वर्ण-महल ही नहीं
बस  इक आशियाने के अरमान हम पिरोते हैं..

किया था प्यार  कि ज़िंदगी को मुकाम मिल जाये,
है अंजाम ये कि अपने काँधों  पे   ज़ख्म ढोते हैं ...

ख़्वाहिश  उनसे मिलने की मिट जाती है देखने भर से,
ये दुनिया है  उनकी   ,  हम किस्मत पे  अपनी रोते हैं..

बनाते रस्ते तुम  कि सफ़र सभी का हो आसां,
क्यूँ  अधूरे सफ़र फिर इन रस्तों पे खत्म होते हैं...
...रजनीश (03.04.11)

Thursday, March 10, 2011

आखिर क्यूँ ?

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आसान सी  है  जिंदगी इसे दुश्वार क्यूँ बनाते हो,
हँसते-खेलते हुए दिलों को  बीमार क्यूँ बनाते हो ।

मिल रही हैं तुम्हें पेट भरने को रोटियाँ,
अपने कारखानों में  तुम  तलवार क्यूँ बनाते हो ।

ज़िंदगी तुम्हारी है   प्यार  का हसीं सौदा,
इसे चंद कौड़ियों का  व्यापार क्यूँ बनाते हो ।

छोटी सी छांव में ही  कटनी है ज़िंदगी,
इंसानी लाशों पे खड़ी ये  मीनार क्यूँ बनाते हो ।

चाहते हो हर कदम बांट ले थोड़ा दर्द कोई,
हर तरफ बँटवारे की  दीवार क्यूँ बनाते हो ।
....रजनीश (10.03.2011)

Friday, February 18, 2011

कुछ हल्के-फुल्के से...

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(1)
मेरी दोस्ती पर, इतना एतबार करिए,
गर मिस करते हैं , मिस्ड कॉल  करिए !
(2)
हैं वो सामने, उनकी  बेरुख़ी को क्या कहिए ...
हमसे कहते हैं कि  'कवरेज़ एरिया' से बाहर हो !
(3)
अब उसके दर तक, कोई रास्ता नहीं जाता ,
अफसोस कि वो 'नंबर' अब मौजूद नहीं हैं ...
(4)
ये दिल है बेकरार , कहीं लगता नहीं ,
बोर ये होता है, जां 'रिमोट' की जाती है...
(5)
हर बार की तरह,  वो कल भी मुझसे रूठ गया,
उसे मनाने  मैंने, फिर से एसएमएस किया...
(6)
कभी दिखा नहीं, पर  होगा वो चाँद सा मुखड़ा ,
एक आरजू है दिल में , हम 'चैट' किया करते हैं ...
(7)
दिल की आवारगी भी क्या-क्या जतन करती है ,
उसने मोबाइल में दो-दो 'सिम' लगा रक्खा है ...
(8)
खो गए थे वो, इस दुनिया की भीड़ में कहीं,
फ़ेस-बुक ने वो हाथ, मेरे हाथों पे रख दिया ...
(9)
सुना था उसकी दुनिया में, चिड़िया चहकती है,
पर यहाँ  , दोपाया इंसान ट्वीट  करता है ...
.....रजनीश (18.02.2011)
अगर पसंद आए तो बाकी फिर कभी !!
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